Prayagraj: इलाहाबाद को 30-40 साल पहले उत्तर प्रदेश का सबसे आधुनिक शहर माना जाता था। इसकी एक वजह यहाँ की मुईर सेंट्रल कॉलेज जिसे 1887 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के तौर पर जाना जाने लगा। यह यूनिवर्सिटी राष्ट्रीय महत्व के शैक्षणिक केंद्र के तौर पर स्थापित हुई। यहाँ पढ़ाने वालों में फ़िराक़ गोरखपुरी और हरिवंश राय बच्चन जैसे दिग्गज शामिल रहे हैं। इनके अलावा यहाँ से स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ कई पूर्व प्रधानमंत्री भी निकले। सुप्रीम कोर्ट के कम-से-कम सात मुख्य न्यायाधीश इस यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं।
प्रयागराज में क्या हाल है शिक्षा के?
अब बात प्रयागराज की, जहां छात्रों की नाराज़गी आजकल सुर्ख़ियों में है। यहाँ के छात्र पेपर लीक होने, परीक्षाएँ टाले जाने और भर्तियां नहीं होने के ख़िलाफ़ सड़कों से लेकर रेलवे ट्रैक पर नाराज़गी ज़ाहिर करते नज़र आए। वहीं अपनी यूनिवर्सिटी, हाईकोर्ट और बौद्धिक संस्कृति के लिए मशहूर यह शहर अब कोचिंग सेंटरों के हब में तब्दील हो चुका है। समय के साथ शहर काफ़ी बदला है। 1980 के बाद प्रदेश की राजनीति में भी काफ़ी बदलाव हुआ है, मंडल की राजनीति के कई नेता इस कैंपस से निकले और सामाजिक बदलाव का असर शिक्षा पर भी दिखाई पड़ा।
सरकारी नौकरी की तलाश में युवा
यहां अब युवा के लिए सरकारी नौकरी एक काल्पनिक दुनिया जैसे लगने लगी है। पिछले दो सालों से विपक्ष के अभियान के केंद्र में 11 लाख सरकारी नौकरियों का मुद्दा रहा है। फिर एक बार योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने पर कईं युवा उम्मीद लगाये बैठे है। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 2020 में ही लाखों लोगों को रोज़गार देने का वादा किया था। उन्होंने 30 मई, 2020 को चार उद्योग संघों के साथ समझौते के बाद कहा कि वे 11 लाख लोगों को रोज़ागार देंगे। यानी रोज़गार मुद्दा तो है, लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि राज्य में उस पर चुनाव लड़ा जा रहा हो।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर डॉक्टर सूर्य नारायण नाराज़ दिखते हैं, “जब से यह सरकार सत्ता में आई है तब से उसने कई चीज़ों पर अंकुश लगाए हैं. पाठ्यक्रमों पर काफ़ी नियंत्रण किया गया है और शिक्षकों और छात्रों की निगरानी की गई है. इससे यहाँ जो भी सीखने और पढ़ने की संस्कृति बची हुई थी, वह नष्ट हो गई है.”
संसाधनों की कमी बन रही है बाधा
ग़ैर-सरकारी संगठन ‘प्रथम’ 2005 से भारत में स्कूली शिक्षा का आकलन कर रही है. यह हर साल शिक्षा के स्तर को दर्शाने वाली ‘इम्पैक्ट’ रिपोर्ट जारी करती है.
नवंबर, 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि संसाधनों की भारी कमी है। इस रिपोर्ट में कहा गया, “उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों में नामांकन में सबसे ज़्यादा 13.2 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई है.”
कोविड के असर को देखते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि “जब स्कूली छात्र लंबे अंतराल के बाद, बिना किसी निर्देश के स्कूलों में वापसी करेंगे तो यह हालत और बुरी होगी, शिक्षकों को कहीं ज़्यादा छात्रों को पढ़ाना होगा। छात्रों की संख्या बढ़ेगी तो वे पहले से कम संसाधनों का सामना किस तरह से करेंगे?”
रिपोर्ट में ऑनलाइन युग में यह भी पता लगाया गया है कि कितने छात्रों के लिए स्मार्टफ़ोन उपलब्ध हैं। छात्रों में स्मार्टफ़ोन की उपलब्धता का राष्ट्रीय औसत 27 प्रतिशत है, वहीं यूपी में यह 18.7 प्रतशित ही है।
क्या आने वाले पांच साल बदलेगी तस्वीर
योगी आदित्यनाथ फिर एक बार सत्ता में आ चुके है। फिर एक बार जनता ने उन पर भरोसा किया है ऐसे में जनता के भरोसे में कितना खड़े उठते है सीएम योगी ये आने वाले पांच साल में ही मालूम होगा। लेकिन केवल शिक्षा की ये कहानी प्रयागराज में नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में यही स्थिती है।