भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व जन्माष्टमी आज पूरे देश भर में बड़े ही हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भक्तजन मंदिरों और अपने घरों में भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना कर रहे हैं। हर कोई नन्हे कान्हा को माखन खिलाने से लेकर संवारने में लगा हुआ है। भक्तजन आज के दिन उपवास रख भगवान से सभी मंगलकामनाएं पूरी होने की अर्चना कर रहे हैं।
कैसे करें श्रीकृष्ण पूजा
जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ती को पीले रंग के कपड़े पहनाएं। धूप और दीप से पूजा के साथ ही दूध-दही, मक्खन भोग के रुप में चढ़ाए। प्रसाद के रुप में भी भक्तजन इसका उपयोग कर सकते हैं। सच्ची श्रद्धा भाव से श्रीकृष्ण जाप किया जाना चाहिये। इसी के साथ ही भगवान अपने सभी भक्तजनों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
राजा कंस के अत्याचार
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मथुरा के राजा कंस के अत्याचार को खत्म करने के लिए श्री विष्णु भगवान ने भगवान श्रीकृष्ण के रुप में जन्म लिया। द्वापर युग में जन्में श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थें। माना जाता है राजा कंस ने जब अपनी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ संपन्न कराया, तभी एक आकाशवाणी हुई जिसमें देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान कंस का वद्ध करने के लिए पैदा होगा। इसके बाद कंस ने देवकी और वुसदेव को काल-कोठरी में बंद कर दिया और एक-एक कर सात संतानों का वद्ध किया।

श्रीकृष्ण जन्म
भगवान कृष्ण ने भाद्रपद महिने (अगस्त-सितंबर) के रोहिणी नक्षत्र की अष्टमी तिथि के दिन मध्य रात्री को जन्म लिया था। भगवान कृष्ण के जन्म के समय काल-कोठरी के सभी ताले खुल गये थे और सभी सैनिक गहरी नींद में सो गए थे। अपने आठवीं संतान को कंस से बचाने के लिए पिता वसुदेव ने बाल कृष्ण को टोकरी में रखकर, यमुदा नदी पार कर अपने मित्र नंद राज के यहां गोकुल में छोड़ आए थे। गोकुल में माता यशोदा और पिता नंद राज ने उनका पालन पोषण किया।
कंस वध
कंस को सूचना मिल चुकी थी का देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान गोकुल में है जिसके बाद क्रूर कंस ने कई बार बाल कृष्ण को मारने की कोशिश की। कंस ने गोकुल में कृष्ण हत्या के लिए कई राक्षसों को भेजा लेकिन सब बाल कृष्ण के हाथों मारे गए। वर्षों तक कोशिश करने के बाद कंस ने श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया। कंस मथुरा में कृष्ण वद् को अंजाम देना चाहता था, लेकिन इसके उलट भगवान कृष्ण ने कंस वद् कर धरती पर धर्म की स्थापना की। अंततः मथुरा वासियों को क्रुर राजा से मुक्ती मिली।